Wednesday, December 28, 2016

.नासमझी के चालीस साल.. चन्द्रप्रताप तिवारी

आज विन्ध्य के भी एक महापुरुष का जन्मदिन है वे हैं पुण्य स्मरणीय चन्द्रप्रताप तिवारी। आचार्य नरेंद्र देव के अनुयायी श्री तिवारी ने यमुना प्रसाद शास्त्री के साथ मिलकर समाजवाद की अलख जगाई। वे गोवा मुक्ति संग्राम के प्रमुख सेनानी रहे। उनकी जीवटता का यह प्रमाण है कि जहाँ उन्होंने सामंतवाद के खिलाफ मोर्चा खोला वहीं सत्तर के दशक मे कांग्रेस सरकार मे मंत्री रहते हुए बिड़ला जैसे औद्योगिक घराने से लोहा लिया और सरकार को न चाहते हुए भी वन विभाग की बांस नीति बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा। उनकी धाक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले आम चुनाव मे कांग्रेस की प्रचंड लहर और नेहरू के करिश्मे के बावजूद सीधी क्षेत्र की लोकसभा समेत विधानसभा की प्रायः सभी सीटों मे सोशलिस्ट पार्टी को विजय मिली। प्रतिपक्ष के विधायक और मंत्री के रूप में विधान सभा मे उनकी बहस और भाषण उन्हें उच्च कोटि के संसदीयवेत्ता की अग्रिम पंक्ति में खड़ा करते हैं। जीवन के उत्तरार्ध में वे सर्वोदयी हो गए। अस्सी के दशक मे जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था तब वे वहाँ शांति की अलख जगाते पदयात्रा कर रहे थे। उन दिनों वे देशबन्धु मे छापने के लिए मुझे प्रायः वहाँ की स्थितियों पर पत्र भेजते थे। रीवा प्रवास पर वे मेरे घर .दफ्तर जरूर आते थे प्रिय बेटी प्रो.उमा परौहा के साथ, आज वे भी हमारे बीच नहीं है। उनकी पुस्तक ..नासमझी के चालीस साल.. मध्यप्रदेश की समकालीन राजनीति का महत्वपूर्ण दस्तावेज है।

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