Wednesday, December 28, 2016

अनुपमजी हमेशा जीवंत हैं पानी की एक एक बूँद और पर्यावरण की आत्मा में

जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिख, और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख.... यशस्वी पिता भवानी प्रसाद मिश्र की इस रचनाधर्मी नसीहत को अपने जीवन में उतारकर चरितार्थ करने वाले अनुपम मिश्र आज पितृधाम प्रस्थान कर गए। अनुपमजी एक ऐसे दुर्लभ मनस्वी थे जो ताउम्र प्रकृति की रक्षा के लिए तपस्यारत रहे. जन जन में जल, जंगल व जमीन की समझ बोते रहे। ..आज भी खरे हैं तालाब .. जल संरक्षण की गीता है। और इसकी शुरुआत ही रीवा जिले के मेरे गाँव बड़ी हर्दी के पडोसी जोडौरी गाँव के तालाबों के उद्धरण के साथ शुरू होती है। उनका सानिध्य मेरे लिए सौभाग्य का विषय रहेगा। उनकी बड़ी बहन नंदिता मिश्र जिन्हें हम सब सम्मान से नंदी दीदी के नाम से जानते हैं, कुछ वर्षों तक आकशवाणी रीवा में थी। उन्ही दिनों उनका रीवा आना जाना रहा। इससे पहले वे खेसरी दाल के प्रकोप की अध्ययन यात्रा में रीवा आ चुके थे, पनासी गांव के कई बदनसीब आदिवासयों की व्यथा को विश्वव्यापी बना चुके थे। बहरहाल ...मैंने अपने गावों के तालाबों के बारे में चर्चा की थी, जो पारंपरिक जल प्रबंधन पर थी। बाद में जब ..आज भी खरे हैं तालाब. ... छपकर आयी तो जोडौरी के तालाबो का उल्लेख दिखा, बाद में पता चला कि अनुपमजी तो चुपके से उस गावँ हो भी आये थे। दूसरा संस्मरण भास्कर के दिनों का है। तब राकेश दीवानजी भी वहीं थे। पर्यावरण दिवस पर सम्पादकीय पेज में विशेष सामग्री देनी थी। राकेशजी के सुझाव पर एक आलेख अनुपम जी से बातचीत के आधार पर तैयार किया, ..धरती माँ को बुखार है. ..लेख छपने के बाद अनुपम जी ने फोन पर बताया की पूरे देश से इस लेख पर बड़ी प्रतिक्रियाएं आईं। आखिरी भेंट सचिन जी के बुलावे पर सुखतवा मीडिया कॉन्क्लेव में हुई। वहां उन्होंने राजस्थान के पारंपरिक जलप्रबंधन पर इतना बढ़िया व्याख्यान दिया की हमलोग वैसे ही बंधे रहे जैसे पहली के बच्चे कोई परिकथा सुनकर बंधे रहते हैं। गंभीर से गंभीर विषयों को ऐसे समझाना और प्रस्तुत करना उनकी संप्रेषणीय कला थी. मैं ये मानता हूँ की देश ही नहीं दुनिया भर में प्रकृति पर इतनी पवित्र समझ रखने वाला शायद ही कोई दूसरा होगा। गाँधी को जीने वाले भारत माता के यशस्वी पुत्र अनुपमजी हमेशा जीवंत रहेंगे पानी की एक एक बूँद और देश के पर्यावरण की आत्मा में.

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